Monday, September 6, 2010

Chandrashekharashtakam


॥अथ श्रीचन्द्रशेखराष्टकम्॥



चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर पाहिमाम्।

चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्षमाम्॥



रत्नसानुशरासनं रजताद्रिशृंगनिकेतनं।

शिञ्जिनीकृतपन्नगेश्वरं अच्युतानलसायकं॥

क्षिप्रदग्धपुरत्रयं त्रिदिवालयैरभिवन्दितं।

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः॥१॥



पञ्चपादप पुष्पगन्ध पदाम्बुजद्वयशोभितं।

भाललोचनजातपावक दग्धमन्मथविग्रहं॥

भस्मदिग्धकलेवरं भवनाशनंभवमव्ययं।

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः॥२॥



मत्तवारणमुख्यचर्म कृतोत्तरीयमनोहरं।

पङ्कजासन पद्मलोचन पूजिताङ्घ्रि सरोरुहं॥

देवसिन्धुतरङ्गसीकर सिक्तशुभ्रजटाधरं।

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः॥३॥



यक्षराजसखंभगाक्षहरम् भुजङ्गविभूषणं।

शैलराजसुतापरिष्कृत चारुवामकलेवरं॥

श्वेडनीलगलंपरश्वध धारिणंमृगधारिणं।

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः॥४॥



कुण्डलीकृतकुण्डलेश्वर कुण्डलंवृषवाहनं।

नारदादिमुनिश्वरस्तुत वैभवंभुवनेश्वरं॥

अन्धकान्तकमाश्रितामरपादपंशमनान्तकं।

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः॥५॥



भेषजंभवरोगिणां अखिलापदामपहारिणं।

दक्षयज्ञविनाशनं त्रिभुवनात्मकंत्रिविलोचनं॥

भुक्तिमुक्तफलप्रदं सकलाघसङ्घनिवर्हणं।

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः॥६॥



भक्तवत्सलमर्चितं निधिमक्षयंहरिदम्वरं।

सर्वभूतपतिंपरात्परं अप्रमेयमनुत्तमं॥

सोमवारिनभूतहाशन सोमवानिलचाकृतिं।

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः॥७॥



विश्वसृष्टिविधायिनं पुनरेवपालनतत्परं।

संहरंतमपिप्रपञ्चम शेषलोकनिवासिनम्॥

क्रीडयन्तमहर्निशं गणनाथयूथसमन्वितं।

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः॥ ८॥



मृत्युभीत मृकण्डुसूनुकृतस्तवं शिव सन्निधौ।

यत्रकुत्रजयत्पठेन्नहितस्यमृत्युभयंभवेत्॥

पूर्णमायुररोगितामखिलार्थकंपरमादरं।

चन्द्रशेखर एव तस्य ददाति मुक्तिमयत्नतः॥



॥इति श्रीचन्द्रशेखराष्टकम्॥