Tuesday, December 8, 2009

Shri Kalabhairava Ashtakam


॥ॐ श्री महागणाधिपतये नमः॥
॥ क्रीं कालिकायै नमो नमः॥
॥ क्रीं कालभैरवाय नमः॥




देवराजसेव्यमानपावनान्घ्रिपङ्कजं

व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरं

नारदादि योगिवृन्द वन्दितं दिगम्बरं

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥१॥



भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकंपरम्

नीलकन्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनं

कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥२॥



शूलटङ्कपाशदन्डपाणिमादिकारणं

श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयं

भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥३॥



भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं

भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोक विग्रहं

विनिक्वणन्मनोग़्यहेमकिङ्किणीलसत्कटिं

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥४॥



धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशनं

कर्मपाशमोचकं सुशर्मधायकं विभुं

स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्दलं

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥५॥



रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं

नित्यमद्वितीयमिष्तदैवतं निरंजनं।

मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्त्रमोक्षणं

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥६॥



अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं

दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनं।

अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥७॥



भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं

काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुं

नीतिमार्ग कोविदं पुरातनं जगत्पतिं

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥८॥


कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनं ।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं प्रयान्ति कालभैरवांघ्रिसन्निधिं नरा ध्रुवं॥

॥इति श्रीमद् शङ्कराचर्य विरचितं कालभैरवाष्टकं सम्पूर्णम्॥

Friday, December 4, 2009

CharanaShringaRahita Nataraja Stotram



॥श्री गणेशाय नमः॥

॥ श्री चरणशृङ्गरहित नटराज स्तोत्रं॥

सदञ्चित मुदञ्चित निकुञ्चित पदं झलझलञ्चलित मञ्जु कटकं
पतञ्जलि दृगञ्जन मनञ्जन मचञ्चलपदं जनन भञ्जन करं।
कदम्बरुचिमम्बरवसं परमम्बुद कदम्ब कविडम्बक कगलं
चिदम्बुधि मणिं बुध हृदम्बुज रविं परचिदम्बर नटं हृदि भज ॥१॥

हरं त्रिपुर भञ्जनं अनन्तकृतकङ्कणं अखण्डदय मन्तरहितं
विरिञ्चिसुरसंहतिपुरन्धर विचिन्तितपदं तरुणचन्द्रमकुटं।
परं पद विखण्डितयमं भसित मण्डिततनुं मदनवञ्चन परं
चिरन्तनममुं प्रणवसञ्चितनिधिं परचिदम्बर नटं हृदि भज ॥२॥

अवन्तमखिलं जगदभङ्ग गुणतुङ्गममतं धृतविधुं सुरसरित्‌-
तरङ्ग निकुरम्ब धृति लम्पट जटं शमनदम्भसुहरं भवहरं।
शिवं दशदिगन्तर विजृम्भितकरं करलसन्मृगशिशुं पशुपतिं
हरं शशिधनञ्जयपतङ्गनयनं परचिदम्बर नटं हृदि भज ॥३॥

अनन्तनवरत्नविलसत्कटककिङ्किणिझलं झलझलं झलरवं
मुकुन्दविधि हस्तगतमद्दल लयध्वनिधिमिद्धिमित नर्तन पदं।
शकुन्तरथ बर्हिरथ नन्दिमुख शृङ्गिरिटिभृङ्गिगणसङ्घनिकटं
सनन्दसनक प्रमुख वन्दित पदं परचिदम्बर नटं हृदि भज ॥४॥

अनन्तमहसं त्रिदशवन्द्य चरणं मुनि हृदन्तर वसन्तममलं
कबन्ध वियदिन्द्ववनि गन्धवह वह्निमख बन्धुरविमञ्जु वपुषं।
अनन्तविभवं त्रिजगन्तर मणिं त्रिनयनं त्रिपुर खण्डन परं
सनन्द मुनि वन्दित पदं सकरुणं परचिदम्बर नटं हृदि भज ॥५॥

अचिन्त्यमलिवृन्द रुचि बन्धुरगलं कुरित कुन्द निकुरम्ब धवलं
मुकुन्द सुर वृन्द बल हन्तृ कृत वन्दन लसन्तमहिकुण्डल धरं।
अकम्पमनुकम्पित रतिं सुजन मङ्गलनिधिं गजहरं पशुपतिं
धनञ्जय नुतं प्रणत रञ्जनपरं परचिदम्बर नटं हृदि भज ॥६॥

परं सुरवरं पुरहरं पशुपतिं जनित दन्तिमुख षण्मुखममुं
मृडं कनक पिङ्गल जटं सनकपङ्कज रविं सुमनसं हिमरुचिं।
असङ्घमनसं जलधि जन्मकरलं कवलयन्त मतुलं गुणनिधिं
सनन्द वरदं शमितमिन्दु वदनं परचिदम्बर नटं हृदि भज ॥७॥

अजं क्षितिरथं भुजगपुङ्गवगुणं कनक शृङ्गि धनुषं करलसत्‌
कुरङ्ग पृथु टङ्क परशुं रुचिर कुङ्कुम रुचिं डमरुकं च दधतमं।
मुकुन्द विशिखं नमदवन्ध्य फलदं निगम वृन्द तुरगं निरुपमं
सचण्डिकममुं झटिति संहृतपुरं परचिदम्बर नटं हृदि भज ॥८॥

अनङ्गपरिपन्थिनमजं क्शिति धुरन्धरमलं करुणयन्तमखिलं
ज्वलन्तमनलं दधतमन्तकरिपुं सततमिन्द्रमुखवन्दितपदं।
उदञ्चदरविन्दकुल बन्धुशत बिम्बरुचि संहति सुगन्धि वपुषं
पतञ्जलिनुतं प्रणवपञ्जर शुकं परचिदम्बर नटं हृदि भज ॥९॥

इति स्तवममुं भुजगपुङ्गव कृतं प्रतिदिनं पठति यः कृतमुखः
सदः प्रभुपद द्वितयदर्शनपदं सुललितं चरणशृङ्ग रहितं।
सरःप्रभव सम्भव हरित्पति हरिप्रमुख दिव्यनुत शङ्करपदं
स गच्छति परं न तु जनुर्जलनिधिं परमदुःखजनकं दुरितदं ॥१०॥

॥इति श्री पतञ्जलि महर्षि कृत श्री चरणशृङ्गरहित नटराज स्तोत्रं सम्पूर्णम्॥